'पृथ्वीराज रासो' को हिन्दी का पहला महाकाव्य मानने वाले विद्वान कौन हैं ?

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MPPSC Assistant Prof 2022 (Hindi) Official Paper-II (Held On: 28 Jan, 2024)
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  1. आचार्य हजारी प्रसाद
  2. मिश्रबन्धु
  3. श्यामसुन्दर दास
  4. आ. रामचन्द्र शुक्ल

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Option 4 : आ. रामचन्द्र शुक्ल
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MPPSC Assistant Professor UT 1: MP History, Culture and Literature
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'पृथ्वीराज रासो' को हिन्दी का पहला महाकाव्य मानने वाले विद्वान है- आ. रामचन्द्र शुक्ल

Key Pointsरामचन्द्र शुक्ल-

  • जन्म-1884-1941 ई. 
  • आलोचनात्मक ग्रंथ-
    • गोस्वामी तुलसीदास(1923 ई.)
    • जायसी ग्रंथावली(1924 ई.)
    • भ्रमरगीत सार(1925 ई.)
    • हिन्दी साहित्य का इतिहास(1929 ई.) आदि।

Important Pointsआचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी- 

  • जन्म- 1907 - 1979 ईo
  • हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। 
  • आलोचनात्मक ग्रंथ- 
    • सूर साहित्‍य (1936)
    • हिन्‍दी साहित्‍य की भूमिका (1940)
    • प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद (1952)
    • कबीर (1942)
    • हिन्‍दी साहित्‍य का आदिकाल (1952)
    • लालित्‍य तत्त्व (1962)
    • साहित्‍य सहचर (1965)
    • कालिदास की लालित्‍य योजना (1965)
    • मध्‍यकालीन बोध का स्‍वरूप (1970)
    • सहज साधना (1963)

मिश्रबंधु -

  • इन्होने 'मिश्रबंधु विनोद' ग्रंथ लिखा।इस ग्रंथ की प्रथम तीन भाग 1913 ई. में तथा चौथा भाग 1934 ई. में प्रकाशित हुआ।
  • इसमें 4591 कवियों को शामिल किया गया है।
  • ग्रिर्यसन यदि काल विभाजन एवं नामकरण कर चुके थे। किंतु व्यवस्थित रूप से इसका श्रेय मिश्रबबंधुओं को जाता है। इन्होंने संपूर्ण इतिहास को पांच कालों में विभाजित किया।
  • मिश्र बंधुओ ने 'हिंदी नवरत्न' नाम से पुस्तक भी लिखी है।
  • इन्होंने रीतिकाल को अलंकृत काल कहा है।

श्यामसुन्दर दास-

  • रचनाएँ- 
    • साहित्यालोचन (1923)
    • भाषाविज्ञान (1924)
    • हिंदी भाषा और साहित्य (1930)
    • रूपकहस्य (1931)
    • भाषारहस्य भाग 1 (1935)
    • हिंदी के निर्माता भाग 1 और 2 (1940-41)
    • मेरी आत्मकहानी (1942)
    • कबीर ग्रंथावली (1928)
    • साहित्यिक लेख (1945)।

Additional Informationपृथ्वीराज रासो-

  • रचनाकार-चंदबरदाई 
  • रचनाकाल- 12 वीं शती 
  • काव्य रूप- प्रबंध 
  • मुख्य-
    • यह रासो काव्य है। 
    • इसमें पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और वीरता के साथ-साथ संयोगिता के साथ उनके प्रेम प्रसंग को भी चित्रित किया गया है। 
    • इसमें 69 समय(सर्ग) है। 
    • 68 प्रकार के छंदों का इसमें प्रयोग किया गया है। 
    • इसके उत्तरार्द्ध को चंदबरदाई के पुत्र जल्हण ने रचा था।
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