हाल ही में एक घटनाक्रम में, केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने पूरे देश में न्यायपालिका में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने की वकालत की है। यह लेख भारतीय न्यायपालिका में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की प्रथा पर प्रकाश डालता है और औपनिवेशिक काल से लेकर वर्तमान समय तक भारतीय न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं का संक्षिप्त इतिहास प्रदान करता है। यह विषय IAS परीक्षा के लिए विशेष रूप से राजनीति और शासन अनुभागों में महत्व रखता है।
भारतीय न्यायालयों में भाषा के प्रयोग पर केंद्रीय विधि मंत्री का क्या विचार है?
केंद्रीय कानून मंत्री का मानना है कि पूरे भारत में अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने महाराष्ट्र की अदालतों में अंग्रेजी के बजाय मराठी का इस्तेमाल किए जाने का उदाहरण दिया। उनका यह भी मानना है कि तकनीक का इस्तेमाल तत्काल प्रतिलेखन और अनुवाद के लिए किया जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल संभव हो सके।
भारतीय न्यायालयों में भाषा के प्रयोग की वर्तमान स्थिति क्या है?
भारत में न्यायालयों की भाषा अभी भी मुख्य रूप से अंग्रेजी है, जबकि कुछ राज्यों में हिंदी का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, सरकार ने न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं।
भारतीय न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने में क्या चुनौतियाँ हैं?
चुनौतियों में अनुवाद एवं व्याख्या सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित अनुवादकों और दुभाषियों की कमी, तथा अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग के प्रति कानूनी समुदाय का प्रतिरोध शामिल है।