गद्यांश MCQ Quiz in हिन्दी - Objective Question with Answer for गद्यांश - मुफ्त [PDF] डाउनलोड करें
Last updated on Mar 21, 2025
Latest गद्यांश MCQ Objective Questions
Top गद्यांश MCQ Objective Questions
गद्यांश Question 1:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर चुनिए:-
श्रम का महत्व सर्वविदित है। इसके माध्यम से मानव विशाल बाद्धाओं को नियंत्रित करता है। गरजते तथा उफनते सागर की लहरों को चीरकर जलपोत चलाकर आगे बढ़ता है। विशाल पर्वतों के मध्य से राह खोजता है। दुर्गम स्थलों को पलक झपकते ही हल करता है। उद्यमी मानव को ही लक्ष्मी वरण करती है। श्रम जीवन में उन्नति की कुंजी है। श्रम ही वह अक्षय और अटूट द्रव्य है जिसे प्राप्त करने में सहायक है। श्रमजीवी मानव राष्ट्र का आभूषण है। आलसी जीवन का प्रतीक है। किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है। जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है। ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं। राष्ट्रीय उत्थान और आत्मनिर्भरता के लिए श्रम तथा सतत उद्यमशीलता परम आवश्यक है। अतः जो आदमी एक क्षण भी व्यर्थ गँवाता है, वह ईश्वर का अपमान करता है। अपने राष्ट्र का अहित करता है। आज देश में जो भयानक गरीबी और बेकारी है उसे देखकर अत्यंत दुःख होता है। अशिक्षित श्रम करने में जी चुराते हैं, उसे हम नहीं जानते। भारत का मनुष्य अवश्य आलस्य से हटकर कार्य में अपना सम्मान समझता है यदि सब श्रम करें तो अपनी गरीब दीन-हीन की भेदभाव समाप्त हो जाए। आज जो जनसंख्या वृद्धि हो रही है, उसके मूल में श्रम न करना है। महात्मा गांधी जी ने कहा था, यदि सब लोग अपने को परिश्रम की कमाई खाएँ तो दुनिया में अन्न की कमी न रहे, और सबको अवकाश का समय भी मिले।
श्रम के बिना व्यक्ति को क्या खाने का अधिकार नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 1 Detailed Solution
श्रम के बिना व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- किसी कवि के शब्दों में, ‘पति का नाम अमर जीवन है।’ निष्क्रियता ही घोर मरण है।
- जीवन के क्षेत्र में श्रम अनिवार्य है। श्रम किए बिना किसी भी व्यक्ति को रोटी खाने का अधिकार नहीं है।
- ईश्वर ने हमें दो हाथ-पैर दिए हैं, वे परिश्रम करने के लिए ही हैं।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- सब्जी - यह वाक्य भी सही माना जा सकता है, लेकिन 'रोटी' खाने का ज़िक्र करना अधिक व्यापक और सामान्य विचार को दर्शाता है।
- मिठाई - यह विकल्प में मिठाई विलासिता का प्रतीक है और यह हर रोज़ की आवश्यकता नहीं है।
- पैसा - यह विकल्प आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, यह बताता है कि किसी भी प्रकार की आर्थिक संपत्ति या धनार्जन श्रम के बिना संभव नहीं है।
गद्यांश Question 2:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए :-
चाबहार ईरान का तटीय शहर है जो दक्षिण-पूर्व में ओमान दूसरे सबसे बड़े और सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है। इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में पहली बार सहमति बनी थी लेकिन फिर परमाणु कार्यक्रम के बारे में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस परियोजना में रुकावट पैदा होती रही। भारत को सिल्क रोड और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए भी नितांत दिया गया था। अब ईरान ने इस परियोजना सहित सभी रेल परियोजनाओं से भारत को अलग कर दिया लेकिन चाबहार बंदरगाह का टर्मिनल का संचालन भारत के पास है। पर ईरान को अमेरिका के साथ भारत की मैत्री रास नहीं आ रही थी और चीन के पाले में जा रहा है।
सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान तक रेलमार्ग बनाने के लिए निमंत्रण पहले किस देश को दिया गया था?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 2 Detailed Solution
सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान तक रेलमार्ग बनाने के लिए निमंत्रण पहले भारत को देश को दिया गया था।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- अब ईरान ने इस परियोजना सहित सभी रेल परियोजनाओं से भारत को अलग कर दिया
- लेकिन चाबहार बंदरगाह का टर्मिनल का संचालन भारत के पास है।
- पर ईरान को अमेरिका के साथ भारत की मैत्री रास नहीं आ रही थी और चीन के पाले में जा रहा है।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- चीन को: परियोजना शुरुआती तौर पर चीन को नहीं दी गई थी।
- ईरान को: ईरान खुद इस परियोजना का हिस्सा है, न कि उसे निमंत्रण दिया गया था।
- अमेरिका को: अमेरिकी को इस परियोजना का निमंत्रण नहीं दिया गया था।
गद्यांश Question 3:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए :-
चाबहार ईरान का तटीय शहर है जो दक्षिण-पूर्व में ओमान दूसरे सबसे बड़े और सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है। इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में पहली बार सहमति बनी थी लेकिन फिर परमाणु कार्यक्रम के बारे में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस परियोजना में रुकावट पैदा होती रही। भारत को सिल्क रोड और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए भी नितांत दिया गया था। अब ईरान ने इस परियोजना सहित सभी रेल परियोजनाओं से भारत को अलग कर दिया लेकिन चाबहार बंदरगाह का टर्मिनल का संचालन भारत के पास है। पर ईरान को अमेरिका के साथ भारत की मैत्री रास नहीं आ रही थी और चीन के पाले में जा रहा है।
चाबहार किस देश के तट पर स्थित है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 3 Detailed Solution
चाबहार देश के तट पर स्थित है- ईरान
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- चाबहार ईरान का तटीय शहर है जो दक्षिण-पूर्व में ओमान दूसरे सबसे बड़े और सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है।
- इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में पहली बार सहमति बनी थी
- लेकिन फिर परमाणु कार्यक्रम के बारे में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस परियोजना में रुकावट पैदा होती रही।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- सिस्तान - सिस्तान ईरान का एक प्रांत है, जो चाबहार बंदरगाह के समीप स्थित है।
- भारत - चाबहार बंदरगाह भारत में स्थित नहीं है।
- बलूचिस्तान - यह प्रांत बलूचिस्तान भी एक प्रांत है, जो चाबहार बंदरगाह के समीप स्थित है।
गद्यांश Question 4:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए :-
चाबहार ईरान का तटीय शहर है जो दक्षिण-पूर्व में ओमान दूसरे सबसे बड़े और सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है। इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में पहली बार सहमति बनी थी लेकिन फिर परमाणु कार्यक्रम के बारे में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस परियोजना में रुकावट पैदा होती रही। भारत को सिल्क रोड और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे तक अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए भी नितांत दिया गया था। अब ईरान ने इस परियोजना सहित सभी रेल परियोजनाओं से भारत को अलग कर दिया लेकिन चाबहार बंदरगाह का टर्मिनल का संचालन भारत के पास है। पर ईरान को अमेरिका के साथ भारत की मैत्री रास नहीं आ रही थी और चीन के पाले में जा रहा है।
चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच सहमति कब बनी थी?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 4 Detailed Solution
चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच सहमति बनी थी- 2003
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- चाबहार ईरान का तटीय शहर है जो दक्षिण-पूर्व में ओमान दूसरे सबसे बड़े और सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है।
- इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच 2003 में पहली बार सहमति बनी थी
- लेकिन फिर परमाणु कार्यक्रम के बारे में ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस परियोजना में रुकावट पैदा होती रही।
गद्यांश Question 5:
Comprehension:
किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए मन का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर न भटकने दें और न ही किसी प्रकार का भय मन में आने दें। अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रखें। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना परीक्षार्थी के लिए अत्यंत जरूरी है। सुबह की सैर, संतुलित भोजन, मन को भरपूर नींद की भी अत्यंत जरूरत होती है। इससे परीक्षा का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन सब विषयों पर ध्यान देने के द्वारा परीक्षार्थी सकारात्मक फल को प्राप्त कर सकता है।
सुबह की सैर और संगीत सुनने से परीक्षार्थी को क्या लाभ मिलता है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 5 Detailed Solution
सुबह की सैर और संगीत सुनने से परीक्षार्थी को लाभ मिलता है- मन को शांति मिलती है
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- सुबह की सैर और संगीत सुनना परीक्षार्थी के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।
- सुबह की सैर से शरीर को ऊर्जा मिलती है और मन शांत होता है।
- वहीं, संगीत सुनने से तनाव कम होता है और दिमाग़ एकाग्र होता है।
Additional Information अन्य विकल्प -
- मन पढ़ाई से विचलित हो जाता है - यह कथन सही नहीं है। वास्तव में, सुबह की सैर और संगीत सुनने से मन और दिमाग को ताजगी मिलती है, जो पढ़ाई के लिए लाभदायक है।
- समय व्यर्थ हो जाता है - यह भी सही नहीं है। सैर और संगीत से शरीर और मन को आराम मिलता है जिससे पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ती है।
- कोई असर नहीं होता है - यह भी सही नहीं है। सुबह की सैर और संगीत दोनों का सकारात्मक प्रभाव होता है जो परीक्षार्थियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
गद्यांश Question 6:
Comprehension:
किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए मन का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर न भटकने दें और न ही किसी प्रकार का भय मन में आने दें। अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रखें। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना परीक्षार्थी के लिए अत्यंत जरूरी है। सुबह की सैर, संतुलित भोजन, मन को भरपूर नींद की भी अत्यंत जरूरत होती है। इससे परीक्षा का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन सब विषयों पर ध्यान देने के द्वारा परीक्षार्थी सकारात्मक फल को प्राप्त कर सकता है।
सफल परीक्षार्थी का क्या लक्षण होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 6 Detailed Solution
सफल परीक्षार्थी का लक्षण होता है- मन को लक्ष्य पर केंद्रित करके सदैव अध्ययन करना
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर न भटकने दें
- और न ही किसी प्रकार का भय मन में आने दें।
- अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रखें।
- अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना परीक्षार्थी के लिए अत्यंत जरूरी है।
- सुबह की सैर, संतुलित भोजन, मन को भरपूर नींद की भी अत्यंत जरूरत होती है।
Additional Information अन्य विकल्प -
- मन को चिंता युक्त रखना - यह सफल परीक्षार्थी का लक्षण नहीं है, क्योंकि चिंता से मन की एकाग्रता भंग हो सकती है।
- सकरामक चिंतन न अपनाना - यह भी सफल परीक्षार्थी का लक्षण नहीं है; सकारामक सोच से प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है।
- नींद में डूबे रहना - यह भी सफल परीक्षार्थी का लक्षण नहीं है; जरूरत से ज्यादा नींद से समय का सही उपयोग नहीं हो पाता।
गद्यांश Question 7:
Comprehension:
किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए मन का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर न भटकने दें और न ही किसी प्रकार का भय मन में आने दें। अपना सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित रखें। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना परीक्षार्थी के लिए अत्यंत जरूरी है। सुबह की सैर, संतुलित भोजन, मन को भरपूर नींद की भी अत्यंत जरूरत होती है। इससे परीक्षा का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन सब विषयों पर ध्यान देने के द्वारा परीक्षार्थी सकारात्मक फल को प्राप्त कर सकता है।
प्रतियोगी द्वारा परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर भटकाने और मन ही मन डरने से या भरपूर तैयारी न करने से क्या होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 7 Detailed Solution
प्रतियोगी द्वारा परीक्षा की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर भटकाने और मन ही मन डरने से या भरपूर तैयारी न करने से होता है- परीक्षा में असफल होंगे
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते समय मन को इधर-उधर भटकाने,
- मन ही मन डरने या भरपूर तैयारी न करने से परीक्षा में असफलता का जोखिम बढ़ जाता है।
- ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मन के शांत और केंद्रित होने से सफलता की संभावना बढ़ जाती है,
- जबकि डर और भटकाव ध्यान भंग करते हैं और तैयारी को कमजोर करते हैं।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- परीक्षा में असफल न होंगे: यह तब संभव है जब तैयारी अच्छी हो और मन शांत एवं केंद्रित हो।
- परीक्षा में शामिल न होंगे: यदि प्रतियोगी मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं, तो वे परीक्षा से पीछे हट सकते हैं।
- परीक्षा में सफल होंगे: यह तभी संभव है जब तैयारी बेहतर हो, मन शांत हो और आत्मविश्वास बना रहे।
गद्यांश Question 8:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए:-
छायावादी हिंदी साहित्य के आधुनिक युग की वह काव्यधारा है जो लगभग 1916 से 1936 (कुछ विद्वानों के अनुसार यह कालखंड प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से माना जाता है) तक प्रमुखता से छाई रही। इसमें प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी आदि प्रमुख कवि हुए और जयशंकर प्रसाद को इसका प्रवर्तक माना जाता है। छायावाद की प्रमुखता का दर्शन 1916-17 ई. के आस-पास दिखाई देने लगता है और इलाहाबाद का 'सरस्वती' प्रेस 1920 ई. के आस-पास ही इसका मुख्खर पर्याय है। 1920 ई. में जबलपुर की श्री शारदा पत्रिका में हिंदी में छायावाद शीर्षक निबंध भी निकला जो एक सैद्धांतिक प्रकार की प्रस्थापना थी। संस्कृत छायावाद नाम का पहला प्रयोग था। सरस्वती में छायावाद का प्रथम प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया। छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य, बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है। छायावाद के लिए मिस्टिकिज्म शब्द के अर्थ से रहस्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति गढ़ायी गयी। सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद 'द्विवेदी' के भिन्न भावकों के हिंदी कवि और मैथिली (सरस्वती 6 मई, 1927) से पता चलता है कि भिन्न कवियों और आलोचकों ने अलग छायावाद कहा है। उन्ही में वे रहस्यवाद कहना चाहते थे, लेकिन मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक समालोचकों ने देखते थे कि वहाँ अंग्रेजी द्विवेदी के लिए वे अंग्रेजी पद्धति से अधिक न थे।
छायावाद नाम का पहला प्रयोग किसने किया था?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 8 Detailed Solution
छायावाद नाम का पहला प्रयोग किया था- मुकुटधर पांडेय
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार-
- संस्कृत छायावाद नाम का पहला प्रयोग था। सरस्वती में छायावाद का प्रथम प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया।
- छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य,
- बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- निराला-
- निराला छायावादी युग के एक प्रसिद्ध कवि थे। उनकी कविता में भावप्रवणता और व्यक्तिगत भावना का समावेश है,
- जो छायावाद की विशेषताओं में से एक है। लेकिन उन्होंने छायावाद शब्द का पहला प्रयोग नहीं किया।
- जयशंकर प्रसाद-
- जयशंकर प्रसाद भी छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी रचनाएँ गहन आध्यात्मिकता और रहस्यवाद से परिपूर्ण होती थीं।
- उन्हें छायावाद का प्रवर्तक भी माना जाता है, लेकिन उनके द्वारा छायावाद शब्द का पहला प्रयोग नहीं किया गया।
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी-
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण सुधारक और संपादक थे।
- उन्होंने हिंदी साहित्य को आधुनिक दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- हालांकि, उनका योगदान विशेष रूप से द्विवेदी युग में होता है। उन्होंने छायावाद शब्द का पहला प्रयोग नहीं किया।
गद्यांश Question 9:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए:-
छायावादी हिंदी साहित्य के आधुनिक युग की वह काव्यधारा है जो लगभग 1916 से 1936 (कुछ विद्वानों के अनुसार यह कालखंड प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से माना जाता है) तक प्रमुखता से छाई रही। इसमें प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी आदि प्रमुख कवि हुए और जयशंकर प्रसाद को इसका प्रवर्तक माना जाता है। छायावाद की प्रमुखता का दर्शन 1916-17 ई. के आस-पास दिखाई देने लगता है और इलाहाबाद का 'सरस्वती' प्रेस 1920 ई. के आस-पास ही इसका मुख्खर पर्याय है। 1920 ई. में जबलपुर की श्री शारदा पत्रिका में हिंदी में छायावाद शीर्षक निबंध भी निकला जो एक सैद्धांतिक प्रकार की प्रस्थापना थी। संस्कृत छायावाद नाम का पहला प्रयोग था। सरस्वती में छायावाद का प्रथम प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया। छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य, बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है। छायावाद के लिए मिस्टिकिज्म शब्द के अर्थ से रहस्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति गढ़ायी गयी। सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद 'द्विवेदी' के भिन्न भावकों के हिंदी कवि और मैथिली (सरस्वती 6 मई, 1927) से पता चलता है कि भिन्न कवियों और आलोचकों ने अलग छायावाद कहा है। उन्ही में वे रहस्यवाद कहना चाहते थे, लेकिन मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक समालोचकों ने देखते थे कि वहाँ अंग्रेजी द्विवेदी के लिए वे अंग्रेजी पद्धति से अधिक न थे।
उक्त अनुच्छेद के अनुसार कौन-सा कथन सही नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 9 Detailed Solution
उक्त अनुच्छेद के अनुसार कथन सही नहीं है- अंग्रेजी या किसी पाश्चात्य साहित्य अथवा बंग साहित्य की वर्तमान स्थिति की कुछ भी जानकारी रखने वालों के सुनते ही समझ जायेगा कि यह शब्द मिस्टिकिज्म के लिए नहीं आया है।
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार-
- छायावाद की प्रमुखता का दर्शन 1916-17 ई. के आस-पास दिखाई देने लगता है और इलाहाबाद का 'सरस्वती' प्रेस 1920 ई. के आस-पास ही इसका मुख्खर पर्याय है।
- 1920 ई. में जबलपुर की श्री शारदा पत्रिका में हिंदी में छायावाद शीर्षक निबंध भी निकला जो एक सैद्धांतिक प्रकार की प्रस्थापना थी।
- सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद 'द्विवेदी' के भिन्न भावकों के हिंदी कवि और मैथिली (सरस्वती 6 मई, 1927) से पता चलता है कि भिन्न कवियों और आलोचकों ने अलग छायावाद कहा है।
Additional Information
- असत्य कथन- अंग्रेजी या किसी पाश्चात्य साहित्य अथवा बंग साहित्य की वर्तमान स्थिति की कुछ भी जानकारी रखने वालों के सुनते ही समझ जायेगा
- कि यह शब्द मिस्टिकिज्म के लिए नहीं आया है।
- सत्य कथन- छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य,
- बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है।
- छायावाद के लिए मिस्टिकिज्म शब्द के अर्थ से रहस्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति गढ़ायी गयी।
गद्यांश Question 10:
Comprehension:
अनुच्छेद पढ़कर, दिए गए सवालों के सही जवाब चुनिए:-
छायावादी हिंदी साहित्य के आधुनिक युग की वह काव्यधारा है जो लगभग 1916 से 1936 (कुछ विद्वानों के अनुसार यह कालखंड प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से माना जाता है) तक प्रमुखता से छाई रही। इसमें प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी आदि प्रमुख कवि हुए और जयशंकर प्रसाद को इसका प्रवर्तक माना जाता है। छायावाद की प्रमुखता का दर्शन 1916-17 ई. के आस-पास दिखाई देने लगता है और इलाहाबाद का 'सरस्वती' प्रेस 1920 ई. के आस-पास ही इसका मुख्खर पर्याय है। 1920 ई. में जबलपुर की श्री शारदा पत्रिका में हिंदी में छायावाद शीर्षक निबंध भी निकला जो एक सैद्धांतिक प्रकार की प्रस्थापना थी। संस्कृत छायावाद नाम का पहला प्रयोग था। सरस्वती में छायावाद का प्रथम प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया। छायावाद क्या है प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकुटधर पांडेय ने लिखा है कि अंग्रेजी के कुछ पाश्चात्य साहित्य, बंगला भाषा और साहित्य की वर्तमान स्थिति को सुनकर ही जानकारों ने रहने वाले युग को इस शब्द विशेषण के रूप में प्रयोग किया है। छायावाद के लिए मिस्टिकिज्म शब्द के अर्थ से रहस्यवाद शब्द की व्युत्पत्ति गढ़ायी गयी। सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', जयशंकर प्रसाद 'द्विवेदी' के भिन्न भावकों के हिंदी कवि और मैथिली (सरस्वती 6 मई, 1927) से पता चलता है कि भिन्न कवियों और आलोचकों ने अलग छायावाद कहा है। उन्ही में वे रहस्यवाद कहना चाहते थे, लेकिन मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक समालोचकों ने देखते थे कि वहाँ अंग्रेजी द्विवेदी के लिए वे अंग्रेजी पद्धति से अधिक न थे।
छायावादी कवियों की मुख्य प्रकृति क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
गद्यांश Question 10 Detailed Solution
छायावादी कवियों की मुख्य प्रकृति है- स्वछंदता
Key Points
- अनुच्छेद के अनुसार -
- छायावादी कवियों की रचनाओं में स्वछंदता (स्वतंत्रता और आत्म-चेतना) एक मुख्य प्रकृति है।
- वे व्यक्तिगत अनुभूतियों और संवेदनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने पर जोर देते हैं।
- स्वछंदता के तहत व्यक्तिगत आत्मा के आंतरिक संघर्ष, अनुभव, भावनाएं और आध्यात्मिक तत्वों को गहनता से अभिव्यक्त किया गया है।
- छायावादी कवियों ने पारंपरिक बंधनों से मुक्त होकर अपनी संवेदनाओं और विचारों को सशक्त रूप में प्रस्तुत किया।
Additional Informationअन्य विकल्प -
- उद्दाम भावना: तीव्र और उग्र भावनाओं का प्रस्तुतीकरण।
- सौंदर्योपासना: सौंदर्य के प्रति विशेष आकर्षण और उपासना।
- आध्यात्मिकता: आध्यात्मिक तत्वों और आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रस्तुतीकरण।