हाल ही में एक घटनाक्रम में, केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने पूरे देश में न्यायपालिका में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने की वकालत की है। यह लेख भारतीय न्यायपालिका में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की प्रथा पर प्रकाश डालता है और औपनिवेशिक काल से लेकर वर्तमान समय तक भारतीय न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं का संक्षिप्त इतिहास प्रदान करता है। यह विषय IAS परीक्षा के लिए विशेष रूप से राजनीति और शासन अनुभागों में महत्व रखता है।
भारत में न्यायालयों की भाषाएँ: इतिहास, वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
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केंद्रीय मंत्री ने अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की वकालत की
- केंद्रीय विधि मंत्री ने पूरे भारत में न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग के महत्व पर विश्वास व्यक्त किया है।
- उन्होंने महाराष्ट्र के न्यायालयों में अंग्रेजी के व्यावहारिक विकल्प के रूप में मराठी भाषा के प्रयोग की प्रथा पर प्रकाश डाला।
- उन्हें विश्वास है कि प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर तत्काल लिप्यंतरण और अनुवाद सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग व्यावहारिक हो सकेगा।
- उन्होंने न्यायपालिका को भी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
भारतीय न्यायालयों में प्रयुक्त भाषाओं पर एक नज़र
- भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता अपार है।
- भारतीय संविधान में अंग्रेजी और हिंदी सहित 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई है।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही अदालतों में प्रयुक्त भाषा एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
- न्यायालयों में भाषा का चयन न्याय के प्रभावी प्रशासन और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारतीय न्यायालयों में भाषा के इतिहास का पता लगाना:
- ब्रिटिश शासन के आगमन से पहले, भारतीय न्यायालय स्थानीय भाषाओं में न्यायिक कार्यवाही करते थे। हालाँकि, ब्रिटिश उपनिवेशीकरण के बाद, अंग्रेजी अदालतों की भाषा बन गई।
- अंग्रेजी शासक वर्ग और शिक्षित अभिजात वर्ग की भाषा होने के कारण, इसका उपयोग जनता पर नियंत्रण रखने के लिए एक उपकरण के रूप में किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद, भारत की संविधान सभा ने क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व को स्वीकार किया और उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक नीति अपनाई।
- इसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं को देश की आधिकारिक भाषाओं के रूप में शामिल किया गया।
- हालाँकि, अंग्रेजी अदालतों की भाषा बनी रही, जिससे यह अभिजात्यवाद का प्रतीक बन गई और कई लोगों के लिए न्याय में बाधा बन गई।
न्यायालयों में भाषा के प्रयोग का वर्तमान परिदृश्य
- भारतीय संविधान नागरिकों को उनकी समझ में आने वाली भाषा में न्याय पाने का अधिकार देता है।
- फिर भी, न्यायालयों की प्रमुख भाषा अंग्रेजी ही है, तथा कुछ राज्यों में हिंदी का प्रयोग किया जाता है।
- इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अदालती कार्यवाही को समझने में विफल हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके कानूनी अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार ने अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं।
- 1963 का आधिकारिक भाषा अधिनियम न्यायालयों में हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की अनुमति देता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में प्रभावशीलता की कमी रही है। कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों ने निचली अदालतों में स्थानीय भाषा का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाए हैं।
- 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सभी उच्च न्यायालय अपने निर्णय क्षेत्रीय भाषाओं में सुनाएं।
- न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि न्याय तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए निर्णयों के अनुवादित संस्करण क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध होने चाहिए।
न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने में बाधाएँ
- अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल के बावजूद, कई बाधाएं बनी हुई हैं।
- एक बड़ी बाधा अनुवाद एवं व्याख्या सेवाओं के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे और संसाधनों का अभाव है।
- कुशल अनुवादकों और दुभाषियों की कमी क्षेत्रीय भाषाओं में सेवाओं के प्रावधान में बाधा डालती है।
- एक अन्य बाधा न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने का कानूनी बिरादरी द्वारा विरोध है।
- कुछ वकील और न्यायाधीश अंग्रेजी को कानूनी पेशे की भाषा मानते हैं और मौजूदा प्रणाली में किसी भी बदलाव का विरोध करते हैं।
- यह प्रतिरोध अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
निष्कर्ष
- न्यायालयों में प्रयुक्त भाषा न्याय के प्रभावी प्रशासन और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यान्वयन से न्याय तक बेहतर पहुंच को बढ़ावा मिलेगा तथा न्यायपालिका और जनता के बीच की खाई को पाटा जा सकेगा।
- यद्यपि सरकार ने क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए पहल की है, फिर भी मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
- कानूनी समुदाय सहित सभी संबंधित पक्षों का संयुक्त प्रयास आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय सभी के लिए सुलभ हो, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों।
भारत में न्यायालयों की भाषाएँ FAQs
भारतीय न्यायालयों में भाषा के प्रयोग पर केंद्रीय विधि मंत्री का क्या विचार है?
केंद्रीय कानून मंत्री का मानना है कि पूरे भारत में अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने महाराष्ट्र की अदालतों में अंग्रेजी के बजाय मराठी का इस्तेमाल किए जाने का उदाहरण दिया। उनका यह भी मानना है कि तकनीक का इस्तेमाल तत्काल प्रतिलेखन और अनुवाद के लिए किया जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल संभव हो सके।
भारतीय न्यायालयों में भाषा के प्रयोग की वर्तमान स्थिति क्या है?
भारत में न्यायालयों की भाषा अभी भी मुख्य रूप से अंग्रेजी है, जबकि कुछ राज्यों में हिंदी का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, सरकार ने न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं।
भारतीय न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने में क्या चुनौतियाँ हैं?
चुनौतियों में अनुवाद एवं व्याख्या सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित अनुवादकों और दुभाषियों की कमी, तथा अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग के प्रति कानूनी समुदाय का प्रतिरोध शामिल है।